Founder Of Nalanda University:भले ही भारत शिक्षा के मामले में दुनिया के कई देशों से पीछे हो, लेकिन एक समय था जब भारत शिक्षा का केंद्र था। विश्व का पहला विश्वविद्यालय भारत में खोला गया, जिसे नालन्दा विश्वविद्यालय के नाम से जाना जाता है। प्राचीन नालंदा विश्वविद्यालय की स्थापना पाँचवीं शताब्दी में गुप्त काल के दौरान हुई थी, लेकिन 1193 में एक आक्रमण के बाद इसे नष्ट कर दिया गया था।
Founder Of Nalanda University:
बिहार के नालंदा स्थित इस विश्वविद्यालय(Founder Of Nalanda University ) में 8वीं से 12वीं शताब्दी तक दुनिया भर के कई देशों के छात्र पढ़ते थे। इस विश्वविद्यालय में कोरिया, जापान, चीन, तिब्बत, इंडोनेशिया, ईरान, तुर्की और भारत के विभिन्न हिस्सों से लगभग 10,000 छात्र पढ़ते हैं। यहाँ लगभग 2,000 शिक्षक पढ़ाते थे। विश्वविद्यालय की स्थापना गुप्त शासक कुमारगुप्त प्रथम (450-470) ने की थी। यह विश्वविद्यालय, जो 9वीं और 12वीं शताब्दी के बीच अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रसिद्ध था, अब खंडहर हो चुका है और दुनिया भर से लोग इसे देखने आते हैं।
नालंदा विश्वविद्यालय की स्थापना कब और कहां हुई
नालंदा विश्वविद्यालय की स्थापना(Founder Of Nalanda University )का समय विशेष रूप से स्पष्ट नहीं है, क्योंकि इसे बहुतांत्रिक संस्कृति के समय में स्थापित किया गया था और उस समय के लिखित रिकॉर्ड्स संवर्धित नहीं हैं। हालांकि, इसे 5वीं सदी में गुप्त वंशी इम्पीरियल डाइनास्टी के समय के राजा कुमारगुप्त पहले द्वारा स्थापित किया गया था।
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नालंदा विश्वविद्यालय भारत, बिहार के नालंदा जिले के संगम विहार क्षेत्र में स्थित था। यह स्थान गंगा नदी के किनारे स्थित एक प्रमुख बौद्ध धरोहर के पास है और इसे अधिकांश भूगोलविदों द्वारा प्राचीन भारतीय सभ्यता का केंद्र माना जाता है।
पुराना नालन्दा विश्वविद्यालय स्थापत्य(Founder Of Nalanda University ) कला का अद्भुत उदाहरण है। आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि इस विश्वविद्यालय में सीखने के लिए तीन सौ कमरे, सात बड़े कमरे और एक विशाल नौ मंजिला पुस्तकालय था, जिसमें तीन हजार से अधिक किताबें थीं।
इस विश्वविद्यालय की प्रवेश परीक्षा बहुत कठिन थी। केवल प्रतिभाशाली छात्र ही वहां दाखिला ले सकते थे। इसके लिए तीन कठिन स्तरों की परीक्षाओं को उत्तीर्ण करना आवश्यक था।
पुराने नालंदा विश्वविद्यालय(Founder Of Nalanda University ) का पूरा परिसर एक मुख्य द्वार के साथ एक विशाल दीवार से घिरा हुआ था। मठों की कतारें उत्तर से दक्षिण तक फैली हुई थीं और उनके सामने कई बड़े स्तूप और मंदिर थे। अब नष्ट हो चुके मंदिरों में बुद्ध की सुंदर मूर्तियाँ स्थापित हैं। नालन्दा विश्वविद्यालय की दीवारें इतनी चौड़ी हैं कि इनके बीच से एक ट्रक भी गुजर सकता है।
1199 में तुर्की आक्रमणकारी बख्तियार खिलजी ने विश्वविद्यालय में आग लगा दी और इसे पूरी तरह नष्ट कर दिया। कहा जाता है कि इस लाइब्रेरी में इतनी किताबें थीं कि आग तीन महीने तक जलती रही। इसके अलावा, उसने कई धार्मिक नेताओं और भिक्षुओं की हत्या कर दी।
नालंदा विश्वविद्यालय क्यों प्रसिद्ध है(Founder Of Nalanda University )
नालंदा विश्वविद्यालय प्राचीन भारतीय संस्कृति का एक अद्वितीय केंद्र रहा है और इसे इसकी महत्ता के कारण कई कारणों से प्रसिद्ध किया जाता है:
- ऐतिहासिक महत्व: नालंदा विश्वविद्यालय (Founder Of Nalanda University )भारतीय ऐतिहासिक साक्षरता और विद्या के क्षेत्र में एक प्रमुख स्थान रहा है। इसे 5वीं सदी में स्थापित किया गया था और इसका उच्चारण बौद्ध धरोहर के भंडार के रूप में था।
- विश्वविद्यालय की विविधता: नालंदा विश्वविद्यालय एक बहुविद्यालय था जो विभिन्न शाखाओं में विद्या प्रदान करता था, जैसे कि दर्शन, गणित, विज्ञान, चिकित्सा, व्याकरण, और धर्मशास्त्र। इसकी बहुविद्या प्रणाली ने उच्च शैक्षिक मानकों की रूपरेखा स्थापित की और यह एक गुणवत्ता से भरा शिक्षा संस्थान बना।
- विश्वविद्यालय का पुनर्निर्माण: नालंदा विश्वविद्यालय का प्राचीन संस्कृति में अपना एक महत्त्वपूर्ण स्थान होने के कारण, भारत सरकार ने इसे पुनर्निर्माण करने का प्रयास किया है। 2010 में नालंदा विश्वविद्यालय को पुनर्निर्मित करने के लिए एक अधिनियम पारित किया गया था, और आज यह एक अंतरराष्ट्रीय शिक्षा और अनुसंधान संस्थान के रूप में पुनर्निर्मित हो रहा है।
- सांस्कृतिक संपर्क: नालंदा विश्वविद्यालय ने अपने समय में विभिन्न भौगोलिक क्षेत्रों से आए छात्रों और विद्वानों का स्वागत किया, जिससे यह एक सांस्कृतिक संवाद केंद्र भी बन गया। यहां के छात्र और शिक्षकों के बीच विचार विनिमय ने एक समृद्धि और समृद्धि का वातावरण बनाया।
- धार्मिक और दार्शनिक उपलब्धियां: नालंदा विश्वविद्यालय के अंदर एक विशाल पुस्तकालय था जो अनगिनत धार्मिक, दार्शनिक, और वैज्ञानिक लेखों का भंडार रखता था। इसकी धारोहर में सृष्टि के विभिन्न पहलुओं की समृद्धि का परिचायक बनाए जाते हैं।
इस प्रकार, नालंदा विश्वविद्यालय को इसके ऐतिहासिक महत्व, शिक्षा की गुणवत्ता, एवं विश्वविद्यालय के पुनर्निर्माण की कोशिशों के कारण प्रसिद्धी प्राप्त है।
नालंदा विश्वविद्यालय को क्यों जलाया गया था(Founder Of Nalanda University )
1199 में तुर्की शासक बख्तियार खिलजी ने नालंदा विश्वविद्यालय (Founder Of Nalanda University )में आग लगा दी थी। जानकारी के मुताबिक इस आग के पीछे एक कहानी है. कहा जाता है कि बख्तियार खिलजी एक बार बहुत बीमार हो गया था. शासक के डॉक्टर अक्सर बख्तियार का इलाज करते थे। लेकिन चिकित्सा उपचार से खिलजी के स्वास्थ्य में सुधार नहीं हुआ। तब बख्तियार खिलजी को नालंदा विश्वविद्यालय के आयुर्वेद विभाग के प्रमुख आचार्य से इलाज कराने की सलाह दी गई।
उसी समय आचार्य राहुल को बुलाया गया और इलाज से पहले शर्त रखी गई कि तुर्की शासक भारतीय औषधियों का प्रयोग नहीं करेगा। इसके बाद आचार्य को कहा गया कि यदि खिलजी ठीक नहीं हुआ तो आचार्य की हत्या कर दी जायेगी।
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आयुर्वेद विभाग के प्रमुख आचार्य ने बख्तियार खिलजी की सभी शर्तें मान लीं और अगले दिन आचार्य ने उनके लिए कुरान लाकर कहा कि अगर वे कुरान के पन्ने शुरू से अंत तक पढ़ेंगे तो सब ठीक हो जाएगा। इससे खिलजी को कुरान पढ़ने और अपनी बीमारी से उबरने में मदद मिली। हालाँकि, ठीक होने के बाद खिलजी संतुष्ट नहीं था बल्कि बहुत क्रोधित था और सोचता था कि भारतीय डॉक्टरों का ज्ञान उससे बेहतर क्यों है।
बौद्ध धर्म और आयुर्वेद के पक्ष के बदले में बख्तियार खिलजी ने 1199 में नालंदा विश्वविद्यालय (Founder Of Nalanda University )में आग लगवा दी। वहां इतनी किताबें थीं कि आग लगने के बाद वे तीन महीने तक जलती रहीं। साथ ही, उसने हजारों धार्मिक नेताओं और बौद्ध भिक्षुओं की हत्या कर दी।
जानकारी के मुताबिक, खिलजी के ठीक होने का कारण यह था कि वैद्यराज राहुल श्रीभद्र ने कुरान के कुछ पन्नों के कोने पर दवा का एक अदृश्य लेप लगा दिया था. वही लेप मात्र दस-बीस पन्ने की जलन पैदा करने वाली लार को चाटकर ठीक हो गया और उसने इसका बदला नालंदा विश्वविद्यालय(Founder Of Nalanda University ) को जलाकर दिया। हम आपको बता दें कि तुर्की शासक बख्तियार खिलजी का पूरा नाम इख्तियारुद्दीन मुहम्मद बिन बख्तियार खिलजी था और वह बिहार का मुगल शासक था।